Nadim S. Akhter 14 May 2020
ये पीपीई किट, ये मास्क और ये वेंटिलेटर्स की कमी
ये मजदूरों का लाखों में पलायन, ये दुकानें बंद और ये नून-शकरकंद
ये बेरोज़गारी, ये राहत पैकेज की मारामारी और ये टिकी हुई महामारी
ये प्रधान का भाषण, ये मजदूरों का छिना राशन और ये गरीबों का उघड़ता तन-बदन, घायल होता मन
ये पुलिस का पहरा, पब्लिक को रोज़ घाव गहरा और फिर प्रधान के सिर जीत का सेहरा
ये ट्रेन को तरसती अँखियाँ, हवाई जहाज़ से रुकी हुई दुनियां और ये सायकिल से गाँव जाने की कहानियाँ
ये दारू के लिए लड़ाई, फिर संक्रमण से जान पे बन आई और ये बोतल गटककर उनका कहना कि नहीं पीने वाले क्या जाने पीर पराई
ये चलते बक्सों पे सोते लाल, भूख से सटके माओं के गाल और ये छूछे भात का खाना, बिना छुआए दाल
ये घर-घर कैद जनता, बाहर जाने को जी मचलता और मस्त बैठे नीति-नियंता
सब भूल जाएंगे हम
एक दिन सब भूल जाएंगे हम
एक दिन सब भूल जाएंगे हम
बस याद रहेगी एक ही ज़िम्मेदारी
लोकतंत्र में वोट देना है
तुमको, हमको, सबको
हम सबको
बारी-बारी
फिर काहे को दिमाग लगाना
और क्या करनी इसकी तैयारी!
लोकतंत्र में वोट देना है
तुमको, हमको, सबको
हम सबको
बारी-बारी
फिर काहे को दिमाग लगाना
और क्या करनी इसकी तैयारी!
---नदीम एस. अख्तर, 14 मई, 2020 #Nadimlines
(चित्र-साभार)
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