Nadim S. Akhter 22 May 2020
मैंने जितनी भी बार हवाई जहाज़ से यात्रा की है, एक डर मन में हमेशा रहा है कि सही सलामत उतर जाएंगे ना! कई दफा बीच हवा में जब मौसम खराब मिल जाता है और air turbulance के चलते विमान हिचकोले खाने लगता है तो सबसे पहले मैं अपने सह-यात्रियों के मुंह देखता हूँ। वे सब के सब डरे हुए होते हैं। कुछ निर्विकार भाव से बहादुर बनने की कोशिश भी करते नज़र आते हैं, ये दिखाने के लिए कि वे तो इस चीज़ के आदी हैं, रोज़ जहाज़ से ही उड़ते हैं। पर मैं भी मनोविज्ञान का छात्र रहा हूँ। समझ जाता हूँ कि पेट में जुलाब मचल रहे हैं, ऊपर से पैबंद लगा रहे हैं। ट्रेन में भी सफर के दौरान कई दफा ये ख्याल आता है कि भारतीय रेल सुरक्षा के मामले में तो थर्ड क्लास है ही, अगर रात में सोते-सोते कहीं ठोक दिया तो मौत से पहले के सन्नाटे को देखने का भी मौका ना मिले शायद। ऐसे ख्याल हर उस इंसान के दिल में आते होंगे, जो जीवन-मृत्यु का मतलब समझता है। और जो चढ़ा के सोए रहते हैं, वे तो स्वर्ग लोक में ही तैर रहे होते हैं। हमारे बिहार-झारखंड में ये प्रचलन आम देखा है कि रात का सफर है तो बोतल गटक के बोगी में घुसो। का मर्दे और हां मर्दे करते हुए चल दो। और अगर भोजपुरी बोल रहा है बन्दा तो समझिए कि दबंग है। सलमान खान ने उसी को देखकर फ़िल्म बनाई होगी। खैर! तो हवाई और ट्रेन से यात्रा के दौरान अगर मौत का भय आपके जेहन में उभरता है तो आप क्या करते हैं? हमारे मन में जब भी मौत का तसव्वुर होता है तो डरने की बजाय यही सोचता हूँ कि अगर मौत आनी होगी तो ऊंट पे बैठे आदमी को भी कुत्ता काट लेगा। और अगर ज़िन्दगी होगी तो पहाड़ से गिरने पे भी बन्दर लोक लेगा यानी catch कर लेगा। मतलब होना वही है जो रब रचि राखा। सो जब तक सांस चल रही है, उपहार समझकर जीते रहो। इसीलिए ज्यादा तीन-पांच में मैं पड़ता भी नहीं। कि ये कर लिया, वो कर लिया। पता है कि दिल धड़कना बंद हुआ और आप खल्लास। दुनिया को एक मिनट नहीं लगेगा आपको भुलाने में। वाकई में यहां सब मोहमाया है। ये पैसा, ये पद, ये राजनीति, ये नफरत, ये साजिशें और पता नहीं क्या-क्या...एक सेकंड नहीं लगता, सब ठहर जाता है। वाकई में यहां सब मोहमाया है। और दुनिया के मोहमाया ने सोशल मीडिया नामक एक और मोहमाया रच दिया है। ये पूरा मायाजाल है। हो सके तो इंसान बने रहिए और कम से कम धर्म के आधार पर दिल में नफरत मत पालिये। जो राजनीति कर रहे हैं, वे भी एक ही सेकेंड में उलट जाएंगे। पता नहीं चलेगा पर इंसान है कि अपनी चिरकुटाई से बाज़ नहीं आता। जब सिकन्दर नहीं संभाल पाया अपना साम्राज्य तो आप किस खेत की मूली हैं। पूरी सभ्यता नष्ट हो जाती है, पता भी नहीं चलता। हड़प्पा खत्म हुई, जो शहरी सभ्यता थी, फिर वैदिक सभ्यता आयी जो ग्रामीण थी। यानी हड़प्पा वालों की सारी तकनीक मिट्टी में मिल गयी। अभी एक वायरस ने पूरी दुनिया को बंद कर दिया है। तो क़ुदरत को कितना वक्त लगेगा पृथ्वी से पूरी की पूरी मानव जाति के सफाए में? 10 मिनट, एक उल्का पिंड गिरेगा और फिर सर्वनाश, जैसा डायनासोर काल में हुआ था। क्या पता, उससे भी पहले हुआ हो, हमें पता तक नहीं। सो एक बार फिर कहूंगा कि इंसान बने रहिए। सुकून की मौत मरिए। ये आपके दिल में तभी आएगा जब आपके कर्म वैसे होंगे। वरना एक दिल ही का तो धड़कना बंद करना है क़ुदरत को। मांस के एक टुकड़े से बिजली खींच लेगा और आपका दिल रुक जाएगा। खतम। रह गया सारा रुआब और सारी ऐंठ यहीं पे। सोचिएगा इस पर। बहरहाल पाकिस्तान में हुए एयर क्रैश में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि। वे भी बहुत कुछ सोचकर हवाई जहाज़ में बैठे होंगे, पर ज़मीन पे उतर नहीं पाए। दुनिया क्षणभंगुर है। तभी तो बुद्ध डर गए थे कि कहां फंस गए भाई? आप ज़िन्दगी के मज़े लीजिए पर ये है बेवफा ही। लौटकर सबको वहीं जाना है। कहाँ? किसे पता? क़ुदरत के पास वापिस। अपने सूक्ष्म और एकाकार रूप में, जहां वृहद ही सूक्ष्म है और सूक्ष्म ही वृहद है। अगर ये समझ जाएंगे तो आप विज्ञान की बिग-बैंग थ्योरी भी समझ जाएंगे।
धन्यवाद।
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